एक नवजात अंकुर सी
इस निर्मल धरती से जन्मी हूँ मैं
शक्ति, प्रेम, त्याग, रक्षा, ममता
इन्ही में ढली हूँ मैं
माँ की गोद से, बाबा के कंधो तक,
प्यार बटोरते चली हूँ मैं
परिवार के सन्मान की चोटी पर,
सीर उठाये खडी हूँ मैं
समाज के तोल-मोल में,
भाई से कन्धा मिलाना सीखी हूँ मैं
मुश्किलों में भी,
अपनी आदर्शों की माला पहने हूँ मैं
आत्म-निर्भर हो कर भी,
अपने साथी का साया बनके, अभिमानित हूँ मैं
माँ बनकर,
ममता से सीता, सुरक्षा से माँ दुर्गा हूँ मैं
शुरुआत से अंत तक, हर रिश्ते के चोगे में
आप ही में, एक नयी मैं से परिचित हूँ मैं
धरा, किनारा, लहर, सागर
हर रूप को जीती नदिया हूँ मैं
नारी हूँ मैं ...