Tuesday, March 15, 2011

नींद

जिसकी गोद मे था बचपन गुज़रा,
आज कर दिया उसीने पराया

आंखो मे काजल लगाते ही पलकें भारी कर जाती थी जो,
अब रात भर मिन्नतों के बाद भी आती नहीं वो

हर रोज़ सिरहाने रेहती थी जो,
अब करवटो की आहट पर भी आती नहीं वो

पैसो ने जेबो की सेहत तो बना दी,
पर मेरी सबसे कीमती चीज़ मुझसे चुराली

जिसकी गोद मे था बचपन गुज़रा,
अब लगता है होगी मुलाकात उस्से बुढ़ापे मे दुबारा

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