Monday, September 12, 2011

ज़िन्द्गी - २

तुम उलझाओ, तो उलझती है

तुम सुलझाओ, तो सुलझती है

तुम मुस्कुराओ, तो वो हसती है

तुम उदास हो, तो वो रोती है

होसला दो, तो वो सवरती है

घबरा जाओ, तो वो सहेम जाती है

डर से,अंधकार ले आती है

और प्यार से, गुद्गुदा जाती है

ना दो कदम आगे, ना दो कदम पीछे

ज़िन्द्गी बस साथ-साथ ही चलती है

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