Wednesday, September 21, 2011

गरज

गरज गरज की बात है भैया
गरज के आगे क्या रुपैया |

जो अनाज खाने की चाह ना होती
सर्द से ठिठुरती रात ना होती |
तो अबभी आग से कोसो दुर हि होते
कच्चे मास पे जीते बंदर होत |
गरज गरज की बात है भैया
गरज के आगे क्या रुपैया |

भटक-भटक कर सर चकराया
तभी हमने गांव बसाया |
गांव-गांव मे अंतर बढता जाता
पहिया, गाडी, जहाज़-एक के बाद एक सब आता जाता |
गरज गरज की बात है भैया
गरज के आगे क्या रुपैया |

एक हाथ दे, एक हाथ ले
दुनिया का पहेला नीयम है ये |
हर गुथ्थी यहीं से उल्ज़े-सुल्ज़े
रीश्ते-नाते सब इसी से बनते |
गरज गरज की बात है भैया
गरज के आगे क्या रुपैया |

सही-गलत सब इसकी सुज़ाई
पाप-पुन्य भी इसीकी रचाई |
इसके चलते, गधे को बाप बनाया
इसने चाहा उसे सर के बल चलाया |
गरज गरज की बात है भैया
गरज के आगे क्या रुपैया |

गरज है जिसके सर पे भैया
वही नाचे है ता-ता-थैया |
गरज की जिसको गरज नहि है
गरज है उसके जेब मे भैया |

गरज गरज की बात है भैया
गरज के आगे क्या रुपैया |

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